बाल मेला: कोरोना के समय में एक छोटा सा प्रयास
कोरोना आया और लॉकडाउन लाया। लॉकडाउन बढ़ने के कारण स्कूल और कॉलेज भी बंद रहे। आज सात माह से बच्चे घर पर ही हैं। जिनके पास मोबाइल है, अब उनकी ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो गई है लेकिन एक वंचित तबका जिनके पास खाने के लाले पड़े हैं, वह मोबाइल कहाँ से खरीद पाएंगे… पढ़ाई करना भी नहीं हो पा रहा है। ऐसे माहौल में जब बच्चों में बीमारी का डर, टेस्टिंग टीम से डर, और साथ ही दोस्तों से मिल नहीं पाना, अपने दिल की बात किसी से कह नहीं पाना – आम बन गया है, बच्चों की बातें कौन सुने? कौन समझे? माता पिता तो काम की तलाश में और खाने की इंतजाम में लगे रहते हैं । साथ ही कुछ बच्चों से उनके घर की परिस्तिथियों के बारे में बात करके हम वयस्कों को लगने लगा कि ख़ास चिंता और डिप्रेशन के लक्षण भी उनकी बातों में दिख रहे हैं ।
इस स्थिति को देखते और समझते हुए हमारे मन में यह विचार आया कि कैसे हम बच्चों के मन की बातों को सांझा करने का अवसर उन्हें दे और साथ ही कुछ मजेदार गतिविधि भी साथ में कर पाएँ जिसमें वह खुश हो ,साथ ही खेल – खेल में कुछ सीखें भी । इसी सोच के साथ हम 4 शिक्षकों ने मिलकर बस्ती में कोविड-19 को देखते हुए छोटे-छोटे ग्रुपों में बच्चों से उनकी बातें लिखकर, चित्र बनाकर और मौखिक रूप में (जो बच्चे लिख नहीं पाते) अभिव्यक्त करने का एक अवसर बनाने का सोचा। इनमें से कुछ बस्तियां नई थीं इसलिए हमें भी एक अवसर मिला बच्चों को, उनके माता -पिता को और उनकी मुश्किलों को, और अधिक समझने का । इस बाल मेले में लेखन के अतिरिक्त टोपी बनाना , ओरिगामी और कहानी सुनना-सुनाना जैसी गतिविधियाँ भी शामिल की, जिसमें बच्चे काफी हंसे और खुश हुए।
बच्चों की लिखित और मौखिक अभिव्यक्ति से निकली बातें कुछ ऐसी थीं :-
चित्र :- (1) बच्चों की नजर से मजदूरों की स्थिति
चित्र :- (2) बच्चों की नजर से कोरोनावायरस का असर
चित्र :-(3) चित्रों द्वारा अभिव्यक्ति
बच्चों को न्यूज़ पेपर से टोपी बनाना सिखाना :-
टोपी बनाने से पहले बच्चों से बात की कि उन्हें धूप से बचने के लिए कौन-कौन सी चीजों की आवश्यकता होगी? इस सवाल के लिए बच्चों के कई सारे जवाब आए। किसी ने टोपी, तो किसी ने छतरी, तो किसी ने बाल्टी, तो किसी ने छाया, तो किसी ने पेड़ आदि बताया। कुछ अलग जवाब भी आए जैसे बारिश, कार, कुर्सी, गड्ढा, बिल्डिंग आदि। बच्चों के इन जवाबों को सुनकर हम सोच में पड़ गए और जब पूछा कि “कैसे?” तो बडे़ ही रोचक जवाब मिले – जैसे “बारिश होगी तो धूप नहीं लगेगी, कार और बिल्डिंग के बगल में बैठेंगे तो धूप नहीं लगेगी, गड्ढा गहरा होगा तो उसके अंदर नहीं लगेगी और धूप लगे तो कुर्सी को उल्टा करके सर के ऊपर ढ़क लेंगे तो नहीं लगेगी धूप ” । इन उदाहरणों से यह बात और स्पष्ट होती है कि जितने मौके बच्चों को उपलब्ध कराते हैं, बच्चे उतना ही ज्यादा उतनी ही ज़्यादा तरह तरह की चीजें सोच पाते हैं, इसलिए बहुत सारे नए नए सोचने के तरीके, अनुभव, कल्पनात्मक ख़याल हमें मिलते हैं। इसके बाद हमने बच्चों के साथ टोपी बनाने की गतिविधि शुरू की । सभी बच्चों ने कोशिश की और टोपी बन गई, जैसे ही टोपी बनी बच्चों के चेहरे पे मुस्कुराहट आई और बच्चे जोर-जोर से एक दूसरे को बताने लगे “मेरी टोपी बन गई! मेरी टोपी बन गई!”
यह बाल मेले के सबसे पहले दिन का अनुभव था। दूसरे दिन हम झागरिया गाँव में बाल मेला करने गए, और वहाँ पर जैसे ही टोपी बनी बच्चों ने कहा “हैप्पी बर्थडे टू यू, हैप्पी बर्थडे टू यू “और बहुत खुश हुए। तीसरे दिन और एक बस्ती गए – यह बस्ती बाग़ मुग़लिया थी और हमारे लिए नयी बस्ती थी । यहाँ पर भी सभी बच्चों ने कोशिश करते हुए टोपी बना ली, लेकिन टोपी बनने के बाद भी बच्चों को पता ही नहीं चला कि टोपी बन गई है । बच्चे सवाल करने लगे “दीदी अब क्या करना है?” जब दीदी बोली, “हाँ देखते हैं क्या बनता है”, समूह के एक बच्चे ने टोपी को खोल कर देखा तो उसे अचानक समझ आया कि यह तो टोपी बन गई! और उसने अपने सिर पर लगा ली। उस बच्चे की कोशिश को देखकर सभी बच्चों ने कोशिश की और सब ने टोपी बना ली और इसी तरह सब की टोपी बन गई।इन बच्चों के साथ इस गतिविधि में काम करते हुए समझ आया कि यह बच्चे काफी अनुशासनात्मक बच्चे है, जब तक आप कुछ बोलते नहीं आगे नहीं बढ़ते हैं।
चित्र :- (4) टोपी बनने के बाद खुश होते बच्चे
कहानी सुनाना :-
बाल मेले के दौरान बच्चों को कहानी सुनाने के लिए कुछ कहानियों को चुना जैसे- चिड़िया और कौआ (किताबघर प्रकाशन) , चिड़ियाघर की बत्तख (सीबीटी प्रकाशन), किसने खाए मालपुए (सीबीटी प्रकाशन) आदि। इनमें से बच्चों और उनके पालकों की पसंदीदा किताब थी – चिड़िया और कौआ । जब दीदी इस कहानी को सुना रही थीं तो दोहराव वाली जगहों पे – जैसे “तू कूपराज, मैं कागराज, दे पनुरवा, धोऊं चुचुरवा खाऊं चिड़ी के बच्चे कांव कांव भई कांव कांव” पर न सिर्फ बच्चे बल्कि जो पालक वहां उपस्थित होते, वे भी खुश हो कर कहने लगते “कांव कांव भई कांव कांव” । कहानी सुनकर बच्चे बहुत खुश हुए । कहानी में क्या खास बात लगी, यह सवाल पूछने पर बच्चों के इस प्रकार के जवाब आए –
इस प्रकार के जवाबों ने सबको हँसाया भी और कुछ देर के लिए सोच में भी ड़ाल दिया।
इसी प्रकार ओरिगेमी के दौरान पेपर को मोड़ने पर बन रही अलग -अलग आकृतियों को गणित से जोड़ते हुए खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने की भी कोशिश की ।
कुछ खास बातें :-
चुनौतियाँ :-
इन गतिविधियों के दौरान कुछ चुनौतियाँ भी आईं –
इस प्रकार हमने इन गतिविधियों के द्वारा कोरोना के डर और इससे हो रहे नुकसानों और तकलीफों को बच्चों की नज़र से समझने और उनके मन में चल रहे ख्यालों को खुलकर रख पाने तथा खेल खेल में सीखने-सिखाने का एक छोटा सा प्रयास किया।
लेखक : शशि नारनवरे, गुलाबचंद शैलू, सुषमा लोधी
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