नहाना किसे अच्छा नहीं लगता?

By Shashikala Naranvare

भोपाल की मदनी नगर बस्ती में मेरा सप्ताह में 2 दिन आना होता है। रोज मुझे यह माहौल तो नहीं दिखाई दिया जो आज है। आज मुझे कमल भैया ने यहां छोड़ा तो सामने का नजारा कुछ अलग ही था। सामने से बहुत शोर आ रहा था, मैं जिन बच्चों के साथ काम करने के लिए यहाँ आती हूँ वे सब उसी शोर में शामिल थे। मैं स्थिर खड़ी होकर देखती रही! सड़क के किनारे छोटे-छोटे दो-तीन साल के बच्चे खड़े रो रहे थे अपनी माँओं के लिए। तभी बच्चू दीदी तेज़ी से आ रही थी और इशारे से बैठने को कहा, उनकी साँस फूल रही थी उनके साथ साथ उनका पूरा परिवार भी वही थे| बच्चू दीदी ने अपनी छोटी बेटी से कहा, “अरे! चुप हो जा, दो दिन का पानी भरना है, कल नहीं आएगा!”
तभी मेरी क्लास की मुस्कान धड़ाम से कुप्पियों पर गिर पड़ी और उसे चोट लग गई लेकिन चोट कि फिक्र छोड़ वो टेंकर की तरफ भागी, मैंने देखा कि टेंकर के ऊपर के ढ़क्कन में पाइपों का जालनुमा फैला हुआ था कि टेंकर पूरी तरह ढक गया था। कुछ ही समय में पूरा टैंकर खाली हो गया किसी को पानी मिला और कुछ लोग निराश होकर दूर पानी लेने जाते हुए दिखे। मैं अपनी निश्चित जगह पर पढ़ाने बैठ गई, धीरे-धीरे सारे बच्चे आने लगे – कुछ गीले थे, कुछ हाँफ रहे थे, जितने छोटे थे उससे ज्यादा वजन वाली कुप्पियाँ जो उठाई थी। मैंने कहा पहले थोड़ी देर बैठ जाओ। जब मैं यहां पढ़ाने आती थी, तो मुझे कभी-कभी लगता था कि मैं बच्चों को बोलूँ कि नहा लो। लेकिन ये द्रश्य देख कर मुझे अंदर ही अंदर ग्लानी महसूस हुई| फिर मैंने सोचा क्यों ना आज बच्चों से इसी बात को लेकर चर्चा की जाए| चर्चा को शुरू करने के लिए मैंने प्रश्न किया – “क्या होता है जब टैंकर आता है?”
बच्चों ने कुछ इस प्रकार जवाब दिए।

“लड़ाई हो जाती है”
“कुप्पी खो जाती है।”
“चोट लग जाती है।”
“सब बहुत थक जाते हैं।”
“पीने जितना पानी मिल जाए वही बहुत है, अगर नहा लिये तो पियेंगे क्या ? नहाने का तो हम सोच भी नहीं सकते हैं।”
“रोज-रोज टैंकर आए तो नहा भी लें, नहाना किसे अच्छा नहीं लगता है? हमारा भी मन करता है पानी से खेले, नहाए, कपड़े धोए… गंदे कपड़े हमें भी अच्छे नहीं लगते हैं।”
इनकी बाते सुन कर मैं सोचने लगी कि बस्ती के पास ही बहुत ऊंची टंकी है जिसका पानी बर्रई व अन्य जगहों पर सप्लाई होता है, लेकिन टंकी के नीचे रहने वाले लोगों को ही पानी नहीं नसीब हो रहा है | ये कैसी विडम्बना है ?

साइंस मेले के दौरान भी मैंने देखा जब कमल भैया ने एक गतिविधि के दौरान गिलास में पानी माँगा और जब भरते हुए उन्होंने कहा – “थोड़ा ज्यादा हो गया, इसे थोड़ा गिरा देते हैं” तो बच्चे तपाक से बोले – “फेंकना मत सर! पानी बहुत कीमती है”। ये बात सुनते ही कमल भैया के साथ साथ अन्य शिक्षक भी नि:शब्द हो गए |
पानी की कीमत अगर समझनी हो तो शायद मदनी के बच्चों से बेहतर कोई नहीं समझ सकता।

ऐसे ही, एक बार जब मैं बच्चों को पास के एक पार्क लेकर गई और वहाँ जब बच्चों ने देखा कि पाइप से पानी बह रहा है तो बच्चों ने कहा, “दीदी, पानी कितना कीमती है, ये अमीर लोग इसे ऐसे ही क्यों बहा रहे हैं?” इसी बात से हमारी चर्चा का विषय भी पानी ही बन गया। तब मैंने बच्चों से पूछा – “मान लो तुम्हारे यहाँ नल लग जाए और रोज खूब पानी मिले तो क्या करोगे?” तब बच्चों ने कहा “जितना पानी चाहिए, लेंगे, फिर नल बंद कर देंगे।” ये बात सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ कि कितना सरलता से कितनी गहरी बात कह दी |

नसीमा जो महज 7 साल की है, उसने कविता के अंदाज़ से बोली –
पानी भर कर घर जाती, घड़े-उतार कर रख देती ,
थोड़ा पानी बकरी को देती, साथ साथ मैं भी पी लेती ,
कपड़े उठाती, नहाती धोती |

रजीना बोली –
पानी भर कर लाती और रोटी सब्ज़ी बनाती,
पानी पीती, स्कूल में भी पानी ले जाती।
आम, जामुन लाकर धोती। कपड़े धोती , खदौली फट्टा (बिस्तर ,गोदड़ी) धोती ।

मुस्कान बोली –
अगर रोज नल (पानी) आता तो रोज नहाती सुबह शाम…जब पानी की जरूरत नहीं रहती तो नल बंद कर देती। कपड़े धोती, खाना बनाती। चाय बनाती, लैट्रिन ले जाती। बकरियों को भी पानी पिलाती| आंगन को गोबर से लिपते, घर धोते, हाथ मुंह धोते।
पौधों में पानी डालते बर्तनों में पानी भर कर रखते, ताकि कभी नल चला जाए तो वह पानी काम आ सके।

अदिती का कहना था कि, “अगर रोज पानी आए तो पानी बचा – बचा कर रखेंगे क्योंकि पानी रोज खर्च हो जाता है। मुझे ही पानी भरना पड़ता है, क्योंकि सब काम पर चले जाते हैं … अगर रोज रोज पानी आता है तो हम रोज ही नहाएंगे। और कपड़े भी धोयेगे, और बाकी का पानी जमा करके रख देंगे। पानी को जरा भी वेस्ट नहीं करेंगे … इसी पानी की वजह से मुझे बड़ी बड़ी कुप्पियाँ उठानी पड़ती है। और इसलिए मेरी हाइट छोटी ही रह जाएगी।”

रोशनी ने कहा –
लोग हमारे बारे में यह बोलते हैं कि यह लोग कैसे रहते हैं। नहाते नहीं हैं, ऐसे ही गंदे से रहते हैं। अब उन्हें तो पता नहीं है ना कि हमारे यहाँ पानी ही नहीं मिलता तो नहाएंगे कैसे? बहुत कम पानी मिलता है हमें, पानी लेने के लिए दूर दूर तक जाना पड़ता है। पानी लाने में २ से 3 घंटे लग जाते हैं, काम का पूरा समय चला जाता है … और जब नल आएगा तो हम पानी भर – भर कर रख देंगे।

एक दिन और जब मैं पढ़ाने के लिए गई तो रोशनी मेरे पास आई और बोली, “मैडम जी, कुछ भी मत करो लेकिन बस यहाँ एक नल लगा दो? एक आंटी बोली मुझे कि – इतना पानी कहां डालते हो? और मुझे गंदा बोला … मुझे बहुत गुस्सा आया, पानी तो लगता है ना, दीदी, घर में फालतू का पानी थोड़ी भरते हैं!” ये कहते हुए उसकी आँखें छलक पड़ीं।

इसी बात पर जब बच्चों की माताओं से जब चर्चा हुई तो गुड्डी दीदी ने बताया, “आज रजिना पानी भरते समय परवीना के घड़े से टकरा गई तो आंख के नीचे सूजन हो गई हल्दी, चूना लगाया, ऐसा अक्सर होता ही रहता हैं”

साथ ही सुनीता ने जोड़ा ने बताया, “बच्चे जब पानी भरने जाते हैं वहाँ पर भी बच्चों को लोग बातें सुनाते हैं, अब हम तो पानी भरने जा नहीं सकते हैं, काम पर जाना पड़ता है बच्चे ही भरते हैं पानी, काम से आने के बाद बच्चे रोते रोते बताते हैं कि आंटी ने हमें गाली बकी या डाँटा।”
इसी तरह की घटनाएं और माताओं ने भी बताई।

इन सभी की बातों सुनकर लगा कि जल्द से जल्द इनकी मुश्किलों का हल होना चाहिए। जहाँ बाकी शहर स्मार्ट सिटी के सपने की तरफ इतनी तेज़ी से बढ़ता दिख रहा है, वहीं शहर के ही एक कोने में स्थित इस बस्ती में पानी की चिंता हर समय, हर किसी को है।

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